यही
बहुत है तूने पलट के देख लिया,
ये लुत्फ़ भी मेरे अरमान से ज्यादा है.
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
यही
बहुत है तूने पलट के देख लिया,
ये लुत्फ़ भी मेरे अरमान से ज्यादा है.
अगर
तुम वजह ना पूछो तो एक बात कहूँ!!!
बिना याद किये तुम्हें अब
रहा नहीं जाता है
मुंसिफ़
हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा
क्यूँ नहीं देते
रोने में
इक ख़तरा है, तालाब नदी हो जाते हैं
हंसना भी आसान नहीं है, लब
ज़ख़्मी हो जाते हैं
मुफलिस
के बदन को भी है चादर की ज़रूरत,
अब खुल के मज़ारों पर ये
ऐलान किया जाए..
क़तील शिफ़ाई
ख्वाहिश ये बेशक नही कि “तारीफ” हर कोई करे…!
मगर “कोशिश” ये जरूर है कि कोई बुरा ना कहे..
उसके
होंठों पे कभी बददुआ नहीं होती ,
बस इक माँ है जो मुझसे कभी
खफा नहीं होती.
मेरी
आँखों का तेरी यादों से कोई ताल्लुक़ तो है,
तसवुर में जब भी आते
हो…चेहरा खिल सा जाता है…
किसी ने
ज़हर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है ज़ायका
मोहब्बत का
तू बिल्कुल चांद की तरह है…
ए सनम..,
नुर भी उतना ही..
गरुर भी उतना ही..
और दूर भी उतना ही.!.