हवा बन कर बिखरने से​

हवा बन कर बिखरने से;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है;

मेरे जीने या मरने से;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है;

उसे तो अपनी खुशियों से;
ज़रा भी फुर्सत नहीं मिलती;

मेरे ग़म के उभरने से;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है;

उस शख्स की यादों में;
मैं चाहे रोते रहूँ लेकिन;

मेरे ऐसा करने से;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है।

फ़क़ीर मिज़ाज़ हूँ मैं

फ़क़ीर मिज़ाज़ हूँ मैं ,अपना अंदाज़ औरों से जुदा रखता हूँ…

लोग मंदिर मस्जिदों में जाते है , मैं अपने दिल में ख़ुदा रखता हूँ…