ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ
क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ
क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं|
काँटे बहुत थे दामन-ए-फ़ितरत में ऐ ‘अदम’
कुछ फूल और कुछ मेरे अरमान बन गये|
तुमसे मीलने और तुम में मीलने में ….
जो फ़र्क़ है….
वही इश्क़ हैं……
बहुत ढूंढने पर भी अब शब्द नही मिलते अक्सर….
अहसासों को शायद पनाह क़लम की अब गंवारा नही…
पर्दा गिरते ही तमाशा ख़तम हो जाता है,
फिर बहुत रोते हैं औरों को हँसाने वाले..
ये शहर शहरे-मुहब्बत की अलामत था कभी
इसपे चढ़ने लगा किस-किस
के ख़्यालात का रंग|
जब आता है गर्दिश का फेर ,
मकड़ी के जाले में फसता है शेर |
हाथ मिलते ही उतर आया मेरे हाथों में कितना कच्चा है दोस्त तेरे हाथ का रंग |
आया हूँ याद बाद-ए-फ़ना उनको भी
क्या जल्द मेरे सीख पे इमान लाये हैं |
ऐ ज़िंदगी..
तेरा भी अहसान..क्यों रखा जाए,
तू भी ले जा..इस खाक से..हिस्सा अपना…..॥