रो रो कर ये

रो रो कर ये पुछा,
मुझसे मेरे पैर के छालोँ ने..!!
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बस्ती कितनी दुर बसा ली,
दिल मेँ बसने वालोँ ने..!

जमीन जल चुकी है

जमीन जल चुकी है
आसमान बाकी है,
दरख्तों तुम्हारा
इम्तहान बाकी है…!

वो जो खेतों की मेढ़ों
पर उदास बैठे हैं,
उन्हीं की आँखों में अब
तक ईमान बाकी है..!!

बादलों अब तो बरस
जाओ सूखी जमीनों पर,
किसी का मकान गिरवी है
और किसी का लगान
बाकी है…!!!