तुम से कौन कहेगा

तुम से कौन कहेगा आकर ?
कितनी रात ढलीं बिन चँदा ,
कितने दिन बिन सूरज बीते ,
कैसे तड़प-तड़प कर बिखरे ,
भरी आखँ में सपने रीते ,
कौन पिये और कैसे खाए ,
मन को जब जोगी भा जाए ,
तुम को कौन सिखाये भा कर ?
तुम से कौन कहेगा आकर….?
उन घावों कि अमर-कहानी ,
जिन के आखर पानी-पानी ,
उन यादों की आपबितायी ,
जिन की चुनर धानी-धानी ,
तुम को कहाँ मिलेगा अवसर ,
कुछ पल रोम-रोम में बस कर ,
हम सा कोई सुनाये गाकर ?
तुम से कौन कहेगा आकर….?

रहते थे कभी

रहते थे कभी जिनके दिल में,

हम जान से भी प्यारों की तरह

बैठे हैं उन्हीं के कूंचे में हम,

आज गुनहगारों की तरह|