मुहब्बत अगर चेहरा देख कर होती
तो यकीन मानो तुम से कभी नही होती
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुहब्बत अगर चेहरा देख कर होती
तो यकीन मानो तुम से कभी नही होती
दाग़ दुनिया ने दिए, ज़ख़्म ज़माने से मिले
हमको तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले|
अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे
तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे
ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे
अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे….!
मैंने करवट बदल के भी देखा है…
उस तरफ भी तेरी जरुरत है….
फितरत किसी की यूँ ना आजमाया करिए साहब…
के हर शख्स अपनी हद में लाजवाब होता है…
एक पागल थी जो मेरी उदासी की भी वजह पूछा करती थी,
पर ना जाने क्यूँ उसे अब मेरे रोने से भी फर्क नहीं पड़ता !!
सिमटते जा रहे हैं दिल और ज़ज्बातों के रिश्ते ।
सौदा करने में जो माहिर है बस वही कामयाब है।
साज़िशें लाखों बनती हैं, मेरी हस्ती मिटाने की! बस दुआएँ मेरी माँ की, उन्हें मुकम्मल होने नहीं देतीं।
तुझसे मोहब्बत के लिए तेरी मौजूदगी की जरूरत नही,.
ज़र्रे-ज़र्रे में तेरी रूह का अहसास होता है|
इस तरह अंदाज़ा लगा …. उसकी कड़वाहटों का,
आख़री ख़त तेरा दीमक से भी खाया न गया…!!!