उससे बिछड़े तो

उससे बिछड़े तो मालूम हुआ की मौत भी कोई चीज़ है ‘फ़राज़’ ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी महफ़िल में गुज़ार आए !!

वहम से भी

वहम से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते,
कसूर हर बार गल्तियों का नही होता

उन आँखों की

उन आँखों की दो बूंदों से समन्दर भी हारे होंगे…

जब मेहँदी वाले हाथो ने मंगलसूत्र उतारे होंगे.शहादत को नमन…

ज़िन्दिगी बन जाती हैं

दो परिंदे सोंच समझ कर जुदा हो गयें और जुदा होकर मर
गयें जानते हो क्यों? क्योंकि उन्हे नहीं मालूम था
कि नज़दीकियाँ पहले आदत फिर ज़रूरत और फिर
ज़िन्दिगी बन जाती हैं|