तुम आते थे

तुम आते थे
बहार आती थी

एक एक लम्हा
महका जाती थी

अब तुम जो नही हो
तुम्हारी यादें आती हैं

दिल के ज़ख़्मों को
कुरेद जाती हैं

कही होकर भी

कही होकर भी नहीं हूँ, कहीं न होकर भी हूँ।

बड़ी कशमकश में हूँ कि कहाँ हूँ और कहाँ नहीं हूँ।

माफ हो गुस्ताखी

गुस्ताखी माफ हो गुस्ताखी ,

क्योंकि हम तुम्हे जिन्दगी कह नही पाते ,

हाँ मगर तुम वो अहसास हो आते ,

जैसे जिन्दगी
तुम्हारे साथ साथ ही हो ,

या जिन्दगी का तुम ही आभास हो !