उसकी कत्थई आँखों में

उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब
चाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं
चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब
आखिर मै किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते है
कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब

कोहरे ने गजब सीख दी

आज सुबह के घने कोहरे ने गजब सीख दी,
बहुत दूर तक देखने की कोशिश व्यर्थ है…
एक एक कदम चलते चलो,
रास्ता स्वयं खुलता जाएगा..!

सोचते रहे ये

सोचते रहे ये रातभर. हम करवट बदल बदलकर…
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जानें क्या बात है तुम में दिल कहीं और लगता ही नहीं.