अपने ही साए में था, मैं शायद छुपा हुआ,
जब खुद ही हट गया, तो कही रास्ता मिला…..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अपने ही साए में था, मैं शायद छुपा हुआ,
जब खुद ही हट गया, तो कही रास्ता मिला…..
मंज़ूर नहीं किसी को ख़ाक में मिलना,
आंसू भी लरज़ता हुआ आँख से गिरता है…..
वो जिंदगी जिसे समझा था कहकहा सबने…..
हमारे पास खड़ी थी तो रो रही थी अभी |
अरे कितना झूँठ बोलते हो तुम,,,
खुश हो और कह रहे हो मोहब्बत भी की है…
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं,
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है…
वो इश्क ही क्या,
जो सलामत छोड़ दे…
एहसास-ए-मोहब्बत की मिठास से मुझे आगाह न कर
ये वो ज़हर है…जो मैं पहले भी पी चुकी हूँ…!!
हजारों महफिलें है और लाखों मेले हैं,
पर जहां तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं|
इतना काफी है के तुझे जी रहे हैं,
ज़िन्दगी इससे ज़्यादा मेरे मुंह न लगाकर…!!
नब्ज़ में नुकसान बह रहा है
लगता है दिल में
इश्क़
पल रहा है…!!