मुझको मेरे वजूद की हद तक न जानिए ,
बेहद हूँ, बेहिसाब हूँ, बेइन्तहा हूँ मैं …!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुझको मेरे वजूद की हद तक न जानिए ,
बेहद हूँ, बेहिसाब हूँ, बेइन्तहा हूँ मैं …!!
वो जो दो पल थे
तेरी और मेरी मुस्कान के बीच
बस वहीँ कहीं
इश्क़ ने जगह बना ली.?
अकेले हम ही शामिल नहीं हैं इस जुर्म में जनाब,
नजरें जब भी मिली थी मुस्कराये तुम भी थे….!!!!
वो भी अपने होठो पे इक खास हूनर रखते है
दिल तोड के कह देते है कि आखिर हुआ क्या है…!!
वो भी अपने होठो पे इक खास हूनर रखते है,
दिल तोड के कह देते है कि आखिर हुआ क्या है…!!
इंतजार की घड़ियाँ ख़त्म कर ऐ खुदा,
जिसके लिये बनाया है उससे मिलवा भी दे अब ज़रा..!
आज इतना ज़हर पिला दो की मेरी साँस ही रुक जाये,
सुना है साँस रुकने पर बेवफा भी देखने आती है ।
कौन देता है उम्र भर का सहारा
लोग तो जनाजे में भी कंधे बदलते रहते हैं
दिल के दरवाजों को हमेशा ही खुला रखता हुँ,
कहा है उसने
“देर लगेगी पर आयेंगी जरूर”