पेड़ से जाते देखा
मैंने एक परिंदे को
याद आ गया तेरा जाना
छोड़ कर दिल के घरोंदे को।।
काश परिंदा लौट आये।।
Category: Shayri-E-Ishq
कही बार मिलते हैं
कही बार मिलते हैं हम बेवजह,
बेवजह हम वजह ढूंड ही लेते हैं।
आँखो के नीचे
आँखो के नीचे..ये काले निशान..
सबूत है. कई राते..खर्च की है.. मैने तुम्हारे लिये..
यूँ लगा जैसे ज़िन्दगी
यूँ लगा जैसे ज़िन्दगी इसे ही कहते हो,
जो यूँ भटकते भटकते तूने हाथ थाम लिया।।
हर रोज तरीके से रखता हूँ
हर रोज तरीके से रखता हूँ,
हर रोज बिखर जाती हैं।
मेरी ज़िन्दगी हो गयी हैं बिलकुल,
टेबल पर पड़ी किताबो की तरह।
ये सोच कर रोज मिलते हैं
ये सोच कर रोज मिलते हैं हम उनसे,
शायद कभी तो पहली मुलाक़ात हो।
आज दर्द उतना ही हैं
आज दर्द उतना ही हैं मेरे भीतर,
जैसे शराब से भरा हुआ जाम।
अब और भरो तो छलक आएगा।
एक सुबह हो जाती हैं
एक सुबह हो जाती हैं हर शाम मेरी,
ऐसा भी एक रात रहती हैं मेरे दिन में।
जब से तुम्हारा पता
जब से तुम्हारा पता मालूम हुआ हैं।
पता नही क्या क्या भूल गया हूँ मैं।
तुमसे हारा मैं
तुमसे हारा मैं, जिस बात पर,
तुम्हारे बात ना करने की बात थी।