किसी ने
ज़हर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है ज़ायका
मोहब्बत का
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
किसी ने
ज़हर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है ज़ायका
मोहब्बत का
तू बिल्कुल चांद की तरह है…
ए सनम..,
नुर भी उतना ही..
गरुर भी उतना ही..
और दूर भी उतना ही.!.
मुसकुराहटे झुठी भी हुआ करती है,
देखना नहीं समझना सीखो…
कभी इतना मत मुस्कुराना की नजर लग जाए
जमाने की हर आँख मेरी तरह मोहब्बत की नही होती….!!!
मासूमियत का कुछ ऐसा अंदाज़ था मेरे
सनम का,
उसे तस्वीर में भी देखूं तो पलकें झुका लेती थी….
बड़ी बेवफ़ा हो जाती है ग़ालिब ये घड़ी भी सर्दियों में।
पाँच मिनट और सोने की सोचो तो तीस मिनट आगे बढ़ जाती है।।
माफी चाहता हूँ गुनेहगार हूँ तेरा ऐ दिल,
तुझे उसके हवाले किया जिसे तेरी कदर नहीं
कमियां तो पहले भी थीं मुझमें..
अब जो बहाना ढूंढ रहे हो तो वो अलग बात है.. !!
किसी मासूम बच्चे की तबस्सुम मेँ उतर जाओ,
तो शायद यह समझ पाओ खुदा ऐसा भी होता है…
ऐ दिल मुझसे बहस ना कर अब चुप भी हो जा,,
उसके बिना साल गुजर गया दिसंबर और गुज़र जाने दे