तुझे पाने की चाहत में, अपने छूट गए…
तुझे टूट के चाहा और चाह कर टूट गए|
Category: Shayari
आज लफ्जों को
आज लफ्जों को मैने शाम को पीने पे बुलाया है,
बन गयी बात तो ग़ज़ल भी हो सकती है…
कल रात मैंने
कल रात मैंने अपने सारे ग़म,
कमरे की दीवार पर लिख डाले,
बस फिर हम सोते रहे और दीवारे रोती रही…
रिश्ता दिल का होना चाहिए
रिश्ता दिल का होना चाहिए
जनाब
ख़ून के रिश्ते हमने वृद्धाश्रम में देखे हैं|
खुब चर्चे हैं
खुब चर्चे हैं खामोशी के मेरी
होंठ पर ही जवाब रख लूं क्या
कहानियाँ लिखने लगा
कहानियाँ लिखने लगा हूँ मैँ अब,
शायरियों मेँ अब तुम समाती नहीँ…
मेरी आँखों में
मेरी आँखों में पढ़ लेते हैं, लोग तेरे इश्क़ की आयतें…
किसी में इतना भी बस जाना अच्छा नहीं होता|
लफ्ज़ वही हैं
लफ्ज़ वही हैं , माने बदल गये हैं
किरदार वही ,अफ़साने बदल गये हैं
उलझी ज़िन्दगी को सुलझाते सुलझाते
ज़िन्दगी जीने के बहाने बदल गये हैं..
कांच था मैं
कांच था मैं किस तरह हीरे से करता दोस्ती..
क्या पता कब काट देगा प्यार से छू कर मुझे…
मैं अक्सर गुज़रता हूँ
मैं अक्सर गुज़रता हूँ उन तंग गलियों से,
जिसके मुहाने पर एक सांवली लड़की
जीवन के आख़िरी पलों में मेरा नाम पुकारती थी।
मैं अक्सर होकर भी नहीं होता हूँ
मैं अक्सर जीकर भी नहीं जीता,,
मैं उसे अब कभी याद नही करता|