ज्यादा कुछ नही बदला उम्र बढ़ने के साथ…
बचपन की जिद समझौतों में बदल गयी…!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ज्यादा कुछ नही बदला उम्र बढ़ने के साथ…
बचपन की जिद समझौतों में बदल गयी…!!
तेरा हाथ छूट जाने से डरता हूँ मैं दिल के टूट जाने से डरता हूँ|
कभी-कभी बहुत सताता है यह सवाल मुझे..
हम मिले ही क्यूं थे जब हमें मिलना ही नहीं था…
यही हुस्नो-इश्क का राज है कोई राज इसके सिवा नहीं जो खुदा नहीं तो खुदी नही, जो खुदी नहीं तो खुदा नहीं
हमने काँटों को भी नरमी से छुआ है..
लोग बेदर्द हैं जो फूलो को भी मसल देते हैं..
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी….
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए…
खामोशियाँ ही बेहतर हैँ जिन्दगी के सफर मेँ…..
शब्दों की मार नेँ कई घर तबाह किये हैँ…..
सोचता हूँ गिरा दूँ सभी रिश्तों के खंडहर ,
इन मकानो से किराया भी नहीं आता है ….!!
नया कुछ भी नहीं हमदम, वही आलम
पुराना है;
तुम्हीं को भुलाने की कोशिशें, तुम्हीं
को याद आना है…
एक तो उसकी पाजेब भी जानलेवा थी
ऊपर से ज़ालिम ने पैरों में मेहन्दी रचाई है