मज़हब पता चला

मज़हब पता चला, जो मुसाफ़िर की लाश का चुपचाप आधी भीड़ अपने घरों को चली गई|

वही रास्ते वही

वही रास्ते वही मंजिले… ना मुझे ख़बर ना उसे पता…

यूँ ही रंजिशों में

यूँ ही रंजिशों में गुजर गयी.. कभी मैं ख़फ़ा कभी वो खफ़ा..।।

बड़े ही खुबसूरत

बड़े ही खुबसूरत वहम में जिंदगी गुजार दी मैंने, की कहीं तो कोई है जो सिर्फ मेरा है !!

शोहरत की बुलंदी

शोहरत की बुलंदी तो पल भर का तमाशा है, जिस शाख़ पे बैठे हो वो टूट भी सकती है..!!

इस तरह अपनाया है

तक़दीर को कुछ इस तरह अपनाया है मैंने जो नहीं थी तक़दीर में उसे भी बेपनाह चाहा है मैंने|

अनजाने में यूँ ही

अनजाने में यूँ ही हम दिल गँवा बैठे, इस प्यार में कैसे धोखा खा बैठे, उनसे क्या गिला करें.. भूल तो हमारी थी जो बिना दिलवालों से ही दिल लगा बैठे।

भले ही लोग मुझे

भले ही लोग मुझे याद रखें कहके शायर,पर अल्फ़ाज़ों के राज़ मेरे मालूम हैं मुझे..

बड़ी मुश्किल से

बड़ी मुश्किल से सुलाया है ख़ुद को मैंने, अपनी आँखों को तेरे ख़्वाब क़ा लालच देकर..

तहजीब की मिसाल

तहजीब की मिसाल गरीबो के घर पे है, दुपट्टा फटा हुआ है फिर भी उनके सर पर है।।

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