तेरी यादो की उल्फ़त से सजी हे महफिल मेरी…
में पागल नही हूँ जो तुझे भूल कर वीरान हो जाऊ…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तेरी यादो की उल्फ़त से सजी हे महफिल मेरी…
में पागल नही हूँ जो तुझे भूल कर वीरान हो जाऊ…
हमारा भी खयाल कीजिये कही मर ही ना जाये हम,
बहुत ज़हरीली हो चुकी है अब ये खामोशीयां आपकी…
सच्चाई के आईने, काले हो गये।
बुजदिलो के घर मेँ, उजाले हो गये॥
झुठ बाजार मेँ, बेखौफ बिकता रहा।
मैने सच कहा तो, जान के लाले हो गये॥……
लहू बेच-बेच कर, जिसने परिवार को पाला ।
वो भुखा सो गया, जब बच्चे कमानेवाले हो गये।
समंदर भी बड़ा मतलबी निकला,,
जान लेकर लहरों से कहता है,,
लाश को किनारे लगा दो।
जिसको भी देखा रोते हुए ही देखा…
मुझे तो ये “मोहब्बत” साजिश लगती है रुमाल बनाने वालो की…
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ,
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ…….
भाग्य रेखाओं में तुम कहीं भी न थे
प्राण के पार लेकिन तुम्हीं दीखते !
सांस के युद्ध में मन पराजित हुआ
याद की अब कोई राजधानी नहीं
प्रेम तो जन्म से ही प्रणयहीन है
बात लेकिन कभी हमने मानी नहीं
हर नये युग तुम्हारी प्रतीक्षा रही
हर घड़ी हम समय से अधिक बीतते ।
किसी की एक शिकन पर भी
हजारों आह भरते हैं
किसी का उम्र भर रोना
यहाँ बेकार जाता है।
इस नई उम्र में प्यार से हारकर
ज़िन्दगी इक अजाना सा डर हो गई!
एक व्यापार था इक लड़ाई सी थी
प्यार में प्यार का एक पल भी न था
प्रीत का जीतना एक कहानी ही है
हारने के सिवा कोई हल भी न था
जो बचा न सकी अपने किरदार भी
वो कथा ही यहाँ फिर अमर हो गई !
इश्क ना सूफी है , ना मुफ़्ती है और ना आलिम है…,
इश्क़ जालिम है..,बहुत ज़ालिम है.., फ़क़त जालिम है…!