इतना संस्कारिक कलयुग आ गया है कि
लड़की कि विदाई के वक्त..
माँ बाप से ज्यादा तो मोहल्ले के लड़के रो देते है
Category: Sad Shayri
तेरी जगह आज भी
तेरी जगह आज भी कोई नही ले सकता
खूबी तूजमे नही कमी मुझमें है
फूलों की तरह
हम तो फूलों की तरह अपनी आदत से बेबस हैं।
तोडने वाले को भी खुशबू की सजा देते हैं।
तनहाई से नही
तनहाई से नही …. शिकायत तो मुझे उस भीड से हैं …
जो तेरी यादो को मिटाने कि कोशिश में होती हैं …..
रंग कितने अजीब है
तकदीर के रंग कितने अजीब है,
अनजाने रिश्ते है फिर भी हम
सब कितने करीब हैं !
तेरी जगह आज भी
तेरी जगह आज भी कोई नही ले सकता
खूबी तूजमे नही कमी मुझमें है
फूलों की तरह
हम तो फूलों की तरह अपनी आदत से बेबस हैं।
तोडने वाले को भी खुशबू की सजा देते हैं।
तनहाई से नही
तनहाई से नही …. शिकायत तो मुझे उस भीड से हैं …
जो तेरी यादो को मिटाने कि कोशिश में होती हैं …..
रंग कितने अजीब है
तकदीर के रंग कितने अजीब है,
अनजाने रिश्ते है फिर भी हम
सब कितने करीब हैं !
घर ढूंढ़ता है
कोई छाँव, तो कोई शहर ढूंढ़ता है
मुसाफिर हमेशा ,एक घर ढूंढ़ता है।।
बेताब है जो, सुर्ख़ियों में आने को
वो अक्सर अपनी, खबर ढूंढ़ता है।।
हथेली पर रखकर, नसीब अपना
क्यूँ हर शख्स , मुकद्दर ढूंढ़ता है ।।
जलने के , किस शौक में पतंगा
चिरागों को जैसे, रातभर ढूंढ़ता है।।
उन्हें आदत नहीं,इन इमारतों की
ये परिंदा तो ,कोई वृक्ष ढूंढ़ता है।।
अजीब फ़ितरत है,उस समुंदर की
जो टकराने के लिए,पत्थर ढूंढ़ता है
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