झूठ बोलते हो

जाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनो ने गोली खायी

थी
क्यों झूठ बोलते हो साहब , की चरखे से आजादी आई थी

रूठ जाए तुमसे

रिश्तों में इतनी बेरुख़ी भी अच्छी नहीं हुज़ूर..

देखना कहीं मनाने वाला ही ना रूठ जाए तुमसे..!!

छोड़ ही दें तो अच्छा

हवाएँ ज़हरीली करने वाले,ये ज़मीं छोड़ ही दें तो अच्छा….

मेरी नेकनीयती पर करना यकीं छोड़ ही दें तो अच्छा….

उनकी कुलबुलाहट से अब मैं भी नहीं इतना “ग़ाफ़िल”..

अब कुछ साँप मेरी आस्तीं छोड़ ही दें तो अच्छा….