सुनो
तुम मेरी ज़िंदगी में शामिल हो ऐसे,
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मंदिर के दरवाज़े पर मन्नत के
धागे हों जैसे..!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
सुनो
तुम मेरी ज़िंदगी में शामिल हो ऐसे,
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मंदिर के दरवाज़े पर मन्नत के
धागे हों जैसे..!!
जाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनो ने गोली खायी
थी
क्यों झूठ बोलते हो साहब , की चरखे से आजादी आई थी
मोहब्बत से भरी कोई ग़ज़ल उसे पसंद
नहीं ,
बेवफाई के हर शेर पे वो दाद दिया करते है…
मेरी
आँखों का तेरी यादों से कोई ताल्लुक़ तो है,
तसवुर में जब भी आते
हो…चेहरा खिल सा जाता है…
किसी ने
ज़हर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है ज़ायका
मोहब्बत का
रिश्तों में इतनी बेरुख़ी भी अच्छी नहीं हुज़ूर..
देखना कहीं मनाने वाला ही ना रूठ जाए तुमसे..!!
मुझे देख के न मुस्कुरा
ज़रा मुस्कुरा के देख ले
न दिल न ज़ज्बे न जोशे उल्फत,
तकल्लुफन मुस्करा रहा है.
वो अपने बेजान चेहरे पे,
जानदार चेहरे सजा रहा है.
वो खुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा..!
जिसे नफरत है उसके बनाये बन्दों से..!
हवाएँ ज़हरीली करने वाले,ये ज़मीं छोड़ ही दें तो अच्छा….
मेरी नेकनीयती पर करना यकीं छोड़ ही दें तो अच्छा….
उनकी कुलबुलाहट से अब मैं भी नहीं इतना “ग़ाफ़िल”..
अब कुछ साँप मेरी आस्तीं छोड़ ही दें तो अच्छा….