वक्त ने कई

वक्त ने कई जख्म भर दिए, मै भी बहुत कुछ भूल चुका

हूँ..
पर किताबों पर धूल जमने से कहानियाँ कहाँ बदलती है..

थक गया हूँ

थक गया हूँ  रोटी के पीछे भाग

भाग कर।
थक गया हु सोती रातो मै जाग जाग कर।।

काश मिल

जाये वही बिता हुआ बचपन।

जब माँ..खिलाती थी भाग भाग

कर।
और सुलाती थी जाग जाग कर।

कोशिशें आज भी

कोशिशें आज भी जारी हैं
हर वक्त

मुस्कराने की!
पर कमबख्त़ ये आँखें
धोख़ा दे ही जाती हैं
कोशिशें

आज भी जारी हैं
जख्मों को छुपाने की!
पर कमबख्त़ ये दुनियाँ

उन्हें कुरेद जाती है!