मौत की राह न देखूं कि बिन आये न रहे,
तुमको चाहूं न आओ तो बुलाये न बने।
इश्क पे जोर नहीं, है ये वो आतिश ‘गालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बने..!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मौत की राह न देखूं कि बिन आये न रहे,
तुमको चाहूं न आओ तो बुलाये न बने।
इश्क पे जोर नहीं, है ये वो आतिश ‘गालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बने..!
हर बार मिली है मुझे अनजानी सी सज़ा
मैं कैसे पूछूं तकदीर से मेरा कसूर क्या है
अकेलेपन ने बिगाड़ी है आदतें मेरी,,,
तुम लौट आऔ तो मुमकिन है सुधर जाऊँ मैं…
कुछ पल यूं ही बीत गये तसव्वुर में तेरे,
कब हसीनाएं अंकल कहने लगी पता ना चला
दिल की ना सुन ये फ़कीर कर देगा ,.,
वो जो उदास बैठे हैं ,नवाब थे कभी
बिल्कुल जुदा है मेरे महबूब की सादगी का अंदाज,
नजरे भी मुझ पर है और नफरत भी मुझ ही से…
सूखे पत्तो सी थी जिंदगानी हमारी
.
लोगो ने समेटा भी तो जलाने के लिए
है दफ़न मुझमे कितनी रौनके मत पूछ ऐ दोस्त…..
हर बार उजड़ के भी बस्ता रहा वो शहर हूँ मैं!
मेरी रूह को छू लेने के लिए बस कुछ लफ़्ज़ ही काफ़ी हैं……
कह दो बस इतना कि तेरे साथ जीना अभी बाक़ी है…!
अजब पहेलियाँ हैं मेरे हाथों की इन लकीरों में…
सफर तो लिखा हैं मगर मंजिलों का निशान नहीं ….!!!