होठों पर रह जाए

वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए,
वो ख़ुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए,
कभी तो समझो मेरी ख़ामोशी को,
वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जाए

गैर अजीज है

वह हजार दुश्मने-जाँ सही मुझे फिर भी गैर अजीज है..
जिसे खाके-पा तेरी छू गई, वह बुरा भी हो तो बुरा नही..!”

खाके-पा – पांव की धूल