किसी दिन देख कर

किसी दिन देख कर मौका

मुक़द्दर मार डालेगा ,
किनारा हूँ मैं जिसका वो समंदर मार डालेगा.

इबादत में नहीं लगता है दिल ये सोच कर मेरा,
जिसे में पूजता हूँ वो

ही पत्थर मार डालेगा .

लड़ा मैं जंगे मैदां उम्र भर तलवार के दम

पर,
कहाँ मालूम था छोटा सा नश्तर मार डालेगा.

दरो दीवार पर

दिखते हैं तेरी याद के धब्बे ,
कभी तन्हाई में मुझको मेरा घर मार

डालेगा.

मुनासिब तो यही होगा न आये नींद अब वर्ना,
मेरे ख्व़ाबों के

बच्चों को ये बिस्तर मार डालेगा.

उसे इक शेर में कह दूँ मैं दिल की

बात तो लेकिन,
भरी महफिल में वो कह कर मुकर्रर मार डालेगा.

बना

ले मुझको उस दुनिया का वारिस या मेरे मौला ,
वगरना मुझको इस

दुनिया का चक्कर मार डालेगा .

पहना रहे हो

पहना रहे हो क्यूँ मुझे तुम काँच का लिबास….
क्या बच गया है फिर कोई पत्थर तुम्हारे पास

आरज़ू होनी चाहिए

आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की……!!
लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं,
कौन पूछता है पिंजरे में बंद पंछियों को,
याद वही आते है जो उड़ जाते है…!!

वक़्त से लड़कर

वक़्त से लड़कर जो
अपना नसीब बदल दे,इंसान वही जो अपनी तक़दीर बदल दे,कल होगा क्या,
कभी ना यह सोचो यारो,क्या पता कल
खुद वक़्त अपनी तस्वीर बदल दे.