ये इक दिन मौत से सौदा करेगी,
जरा…होशियार रहना ज़िंदगी से
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ये इक दिन मौत से सौदा करेगी,
जरा…होशियार रहना ज़िंदगी से
जरुरी तो नहीँ हर रिश्ते को नाम की डोर से बाँधा जाए,
बाँधे गए रिश्ते अक्सर टूट जाते हैँ..!!!
इंसान हूँ, तहरीर नहीं हूँ मैं ।
पत्थर पे लिखी लकीर नहीं हूँ मैं ।।
मेरे भीतर इक रूह भी बसती है लोगों
सिर्फ़ एक अदद शरीर नहीं हूँ मैं ।
वक़्त नूर को बेनूर बना देता है!
छोटे से जख्म को नासूर बना देता है!
कौन चाहता है अपनों से दूर रहना पर वक़्त सबको मजबूर बना देता है!
तुम क्या जानो
कहाँ हो तुम
मेरे दिल में
मेरी हर धड़कन में
हर निगाह
जो दूर तलाक जाती है
हर आशा
जो पूरा होना चाहती है
तुम क्या जानो
क्या हो तुम मेरे लिए
मेरी हर पल की आस
मेरा विश्वास
ज़िन्दगी की बैचेन घड़ियों में
जिन्दा रहने को
पुकारती हुई तुम
मेरे करीब….हर पल
तुम ही तुम हो
मेरे लिए ये विश्वास भी
सिर्फ तुम…
मेरे दर्द का जरा सा हिस्सा लेकर देखो।
सदियो तक शायरी करोगे जनाब।
दिल भी न जाने किस किस तरह ठगता चला गया….
कोई अच्छा लगा और बस लगता चला गया………..
कैसे कह दूँ मोहब्बत नही है तुमसे..!!
मुँह से निकला झूट आँखों में पकडा जायेगा..!!
हर नज़र में एक कोशिश होती है, हर दिल में एक चाहत होती है. मुमकिन नहीं हे हर एक के लिए ताजमहल बनाना, क्योकि हर एक के दिल में चार – पांच मुमताज़ होती है!.
वो साथ था हमारे या हम पास थे उसके…?
वो ज़िन्दगी थी कुछ दिन या थे ज़िन्दगी के कुछ दिन….?