बहुत दिनों से इन आँखों को यही समझा रहा हूँ मैं
ये दुनिया है यहाँ तो इक तमाशा रोज़ होता है|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बहुत दिनों से इन आँखों को यही समझा रहा हूँ मैं
ये दुनिया है यहाँ तो इक तमाशा रोज़ होता है|
नजदीक आ के देख मेरे अहसास की शिद्दत,
ये दिल कितना धड़कता है, तेरा नाम आने पर
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ,
मेरे दिल को बनाए कितना विभोर ,
मैं जब भी उसे अपने कानों में दोहराती ,
तेरी कसम , तेरे नज़दीक और आती ,
बहुत आशिकाना था वो एक शोर ,
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ।
वो रातों की तन्हाई का एक नज़ारा ,
जिसमे दोनों का दिल था सिर्फ बेचारा ,
वो तेरी कहानी अपने लबों से सुनाना ,
वो मेरी कहानी मेरे लबों से सुनते जाना ,
बहुत रंगीन था वो एक दौर ,
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ।
उस शोर में थी दो दिलों की बेचैनी ,
जिसमे एक-दूजे को थी अपनी चाहत देनी ,
जिसमे थे अरमानों के पिघलते साए ,
ना रुकने वाले तूफ़ान तब थे आए ,
बहुत दिलकशी का था वो एक मोड़ ,
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ।
मेरे अंदर की गर्मी तब जली थी तेरे आगे ,
उस शोर में भी तूने सुने थे मेरे वादे ,
तब लफ़्ज़ों पर कोई काबू नहीं था ,
उस रात सब कुछ बेकाबू हुआ था ,
बहुत सुरीले थे वो कुछ बोल ,
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ।
मैं सुनने को तेरे दिल के दरवाज़ों का शोर ,
खड़ी थी दरवाज़े के पीछे छिप के चितचोर ,
तू सुनाने लगा जब मुझे अपनी बेहयाई ,
मैं गिराने लगी अपनी शर्म ~ ओ ~ हया की परछाई ,
बहुत नाज़ुक सा था वो एक जोड़ ,
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ।
उस शोर में मेरी हँसी दब गई थी ,
उस शोर में तेरी हँसी मिल गई थी ,
उस शोर में साँसों का तूफाँ उठा था ,
उस शोर में धड़कनों पर पहरा लगा था ,
बहुत गहरा था वो जवानी का जोर ,
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ।
मैं जब भी तुझे भुलाने की सोचूँ ,
उस शोर के ना मिलने की तड़प से मचलूँ ,
जिसमे हम दोनों फना जब हुए थे ,
सारी क़ायनात के दर्शन तब हुए थे ,
बहुत नशीली थी उस शोर की वो होड़ ,
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ।
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ,
मेरे दिल को बनाए कितना विभोर ,
मैं जब भी उसे अपने कानों में दोहराती ,
तेरी कसम , तेरे नज़दीक और आती ,
बहुत आशिकाना था वो एक शोर ,
वो तेरी-मेरी मोहब्बत का शोर ।।
वो आये मेरी कब्र पे अपने हमसफ़र के साथ
कौन कहता है के दफनाए हुए को जलाया नही जाता
बेचैन राते बिताकर मैं किश्तें चुका रहा हूँ..
उसने एक बार मुस्कुराकर कुछ यूँ कर्ज़दार कर दिया..
जीतने का दिल ही नही करता अब,
मेरे दोस्त, एक शख्स को जब से हारा है मैंने ।
कुछ पतंगें तो मैंने यहीं सोचकर काट दी यारों…
कि उन्हें बेचकर चौराहे पर खड़े ग़रीब का पेट तो भरेगा !!!
हो सके तो अब के कोई सौदा न करना
मैं पिछली मोहब्बत में सब हार आया हूँ…..
किसकी पनाह में तुझको गुज़ारे” ऐ जिंदगी “,
अब तो रास्तों ने भी कह दिया है ,कि घर क्यों नहीं जाते..
ले लो वापस ये आँसू ये तड़प और ये यादें सारी,
नही हो तुम अगर मेरे तो फिर ये सजाएँ कैसी..