जिसको भी देखा रोते हुए ही देखा…
मुझे तो ये “मोहब्बत” साजिश लगती है
रुमाल बनाने वालो की…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जिसको भी देखा रोते हुए ही देखा…
मुझे तो ये “मोहब्बत” साजिश लगती है
रुमाल बनाने वालो की…
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ,
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ…….
जुबान की हिफाज़त दोलत से कहीं ज्यादा मुश्किल है…
लोग अक्सर मुझसे पुछते हैं जगह – जगह तुम्हारी बहुत “निन्दा ” हो रही है..
और मेरा एक ही जवाब होता है ….
“निन्दा ” उसी की होती है जो जिन्दा है ।
तारीफ तो हमेशा मरे हुये की होती है…
बस अपने विश्वास में जियो..
अच्छे काम करते रहिये चाहे लोग तारीफ करें या न करें..
आधी से ज्यादा दुनिया सोती रहती है..
सूरज’ फिर भी उगता है..
यह आरजू नहीं कि किसी को भुलाएं हम….
न तमन्ना है कि किसी को रुलाएं हम….
जिसको जितना याद करते हैं;…
उसे भी उतना याद आयें हम…..
भाग्य रेखाओं में तुम कहीं भी न थे
प्राण के पार लेकिन तुम्हीं दीखते !
सांस के युद्ध में मन पराजित हुआ
याद की अब कोई राजधानी नहीं
प्रेम तो जन्म से ही प्रणयहीन है
बात लेकिन कभी हमने मानी नहीं
हर नये युग तुम्हारी प्रतीक्षा रही
हर घड़ी हम समय से अधिक बीतते ।
भाग्य रेखाओं में…
हमे दुवाए दिल से मिली है,..
कभी खरीदने को जेब में हाथ नही डाला|
घर से निकले हैं
आँसुओं की तरह |
ज़िन्दगी के ब्लैक बोर्ड पर अनगिनत पेँसिलोँ को
घिसते और रबर के बुरादे को झाड़ते हुए….
कितने सपने सजाते और मिटाते हम सब बड़े हो गए….
जागने वाले तुझे ढूंढते ही रह जाएंगे…
मैं तेरे सपने में आकर तुझे ले जाऊँगा
सिर्फ …. तस्वीर रह गई बाकी
जिसमें हम … एक साथ बैठे हैं …॥