ज़िंदगी आगे भाग रही है

ज़िंदगी आगे भाग रही है और वक़्त पीछे छूट जा रहा है,
और साथ ही छूट रहा है हर वो हक़
तुम्हें याद करने का,
तुम्हें सोचने का,
तुम्हें जीने का!
दुनिया चाहती है हम तुम्हें याद न करें,
तुम्हारा नाम न लें,
सही कहते हैं…
आख़िर चाहती तो तुम भी यही थी!”

काश कोई हम

काश कोई हम पर भी
इतना प्यार जताती
पिछे से आकर वो
हमारी आंखो को छुपाती
हम पुछते कौन हो तुम?
और वो हस कर खुद को हमारी जान बताती|