एक ख्वाहिश जली बुझी सी..
फिर खाक हुई आहिस्ता-आहिस्ता..!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
एक ख्वाहिश जली बुझी सी..
फिर खाक हुई आहिस्ता-आहिस्ता..!
ज़िंदगी आगे भाग रही है और वक़्त पीछे छूट जा रहा है,
और साथ ही छूट रहा है हर वो हक़
तुम्हें याद करने का,
तुम्हें सोचने का,
तुम्हें जीने का!
दुनिया चाहती है हम तुम्हें याद न करें,
तुम्हारा नाम न लें,
सही कहते हैं…
आख़िर चाहती तो तुम भी यही थी!”
ये इनायतें ग़ज़ब की ,
ये बला की मेहरबानी,
मेरी ख़ैरियत भी पूछी,
किसी और की ज़ुबानी….
काश कोई हम पर भी
इतना प्यार जताती
पिछे से आकर वो
हमारी आंखो को छुपाती
हम पुछते कौन हो तुम?
और वो हस कर खुद को हमारी जान बताती|
बस तुम कोई उम्मीद दिला दो मुलाकात की ,
फिर इन्तजार तो हम सारी उम्र कर लेंगें|
लफ़्ज़ों के इत्तेफाक़ में,यूँ बदलाव करके देख,
तू देख कर न मुस्कुरा,बस मुस्कुरा के देख।।
सादा सा एक वादा है उन आँखों का …
बंद हों तब भी तुम्हें देखेंगे.. !!!!!!!!!!
बड़े सपनो की चर्चा कभी छोटी सोच वालो से मत करो !!!
मत कर हिसाब तूं मेरी मोहब्बत का,
नहीं तो ब्याज में ही तेरी जिन्दगी गुजर जायेगी
मतलब निकल जाने पर पलट के देखा भी नहीं,
रिश्ता उनकी नज़र में कल का अखबार हो गया !!