तराजू मोहब्बत का था
बेवफाई भारी पड गयी|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तराजू मोहब्बत का था
बेवफाई भारी पड गयी|
आप ने तीर चलाया तो कोई बात न थी…
ज़ख्म मैंने जो दिखाया तो बुरा मान गए…
कोई मरहम लगाने वाला नहीं था
… और जख्म जल्दी भर गये ..
बहुत ढूंढने पर भी अब शब्द नही मिलते अक्सर….
अहसासों को शायद पनाह क़लम की अब गंवारा नही…
हमको कमाल हासिल है
ग़म से खुशियाँ निचोड़ लेते हैं|
छूते रहे वो दिल मेरा गज़ल की आग से,
जलते रहे हम रातभर शायर की बात से|
परिंदे उनकी छत पर बैठे हैं बिन दाने के बिन पानी के
हमने तो बड़े चर्चे सुने थे उनकी मेहरबानी के….
एक तरफा ही सही…प्यार तो प्यार है…,
उसे हो ना हो…लेकिन मुझे बेशुमार है…!
जब हम लिखेंगे दास्तान-ए-जिदंगी तो,
सबसे अहम किरदार तुम्हारा ही होगा..
लफ़्ज़ों पे वज़न रखने से नहीं झुकते मोहब्बत के पलड़े साहिब
हलके से इशारे पे ही,,
ज़िंदगियां क़ुर्बान हो जाती हैं|