मौत का आलम

मौत का आलम देख कर तो ज़मीन भी दो गज़ जगह दे देती है…
फिर यह इंसान क्या चीज़ है जो ज़िन्दा रहने पर भी दिल में जगह नहीं देता…

कल के नौसखिए..

कल के नौसखिए..सिकंदर हो गए..!
हल्की हवा के झोंके..बवंडर हो गए..!
मै लड़ता रहा..उसूलों की पतवार थामें..!
मै कतरा ही रहा..लोग समन्दर हो गए..

किस खत में

किस खत में रखकर भेजूं अपने इन्तेजार को ,
बेजुबां है इश्क़ , ढूँढता हैं खामोशी से तुझे|