बहुत दिनों से इन आँखों को यही समझा रहा हूँ मैं
ये दुनिया है यहाँ तो इक तमाशा रोज़ होता है|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बहुत दिनों से इन आँखों को यही समझा रहा हूँ मैं
ये दुनिया है यहाँ तो इक तमाशा रोज़ होता है|
उनकी गहरी नींद का मंज़र भी
कितना हसीन होता होगा..
तकिया कहीं.. ज़ुल्फ़ें कहीं..
और वो खुद कहीं…!!
गुलाब के फूलों को होंठो से लगा कर एक अदा से वो बोली
कोई पास ना होता… तो तुम इसकी जगह होते…
सोचते हैं जान अपनी उसे मुफ्त ही दे दें ,इतने मासूम खरीदार से क्या लेना देना ।
तुम आसमाँ की बुलंदी से जल्द लौट आना
हमें ज़मीं के मसाइल पे बात करनी है..!
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला…!
गलियों की उदासी पूछती है, घर का सन्नाटा कहता है…
इस शहर का हर रहने वाला क्यूँ दूसरे शहर में रहता है..!
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा |
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला, बन के इश्तिहार मिला।
वो बोले मुझे विरानियाँ पसँद है,हमने कहा मेरे दिल की सैर कर लो