इश्क का होना

इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये…
अगर कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता..!!

सितारों के आगे

सितारों के आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क के इम्तेहाँ और भी हैं
तू शाहीन है परवाज़ है तेरा काम
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं
तहि जिंदगी से नहीं ये फिज़ाएं
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं|

कहा से मंज़र

कहा से मंज़र समेट ले नज़र कहा से उधार मांगे
रिवायतों को न मौत आये तो जिंदगी इंतिशार मांगे|