गुनाह होता तो माफ़ी मांग लेता…
मैंने तो मोहोब्बत की थी…!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
गुनाह होता तो माफ़ी मांग लेता…
मैंने तो मोहोब्बत की थी…!!
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
मुझे घमंड था की मेरे चाहने
वाले बहुत है इस दुनिया में,
बाद में पता चला की सब चाहते है
अपनी ज़रूरत के लिए |
पूछ रही है आज मेरी हर शायरी मुझसे
कहाँ गए वो दीवाने जो वाह वाह किया
करते थे |
हर दफा बीच में आ जाता है…
ये मज़हब कुछ रास्ते का पत्थर सा लगता है।
उस टूटे झोपड़े में बरसा है झुम के
भेजा ये कैसा मेरे खुदा सिहाब जोड़ के
नासमझ हो गये है, कातिल शहर के;
मुझ लाश पे ही, वार कर जाते है।
कौन कहता है कि..
दिल सिर्फ सीने में होता है..
तुझको लिखूँ तो..
मेरी उंगलियाँ भी धड़कती हैं..
काश आंसुओ के साथ यादे भी बह जाती …
तो एक दिन तस्सली से बैठ के रो लेते…
अल्फ़ाज़ चुराने की जरूरत ही न पड़ी कभी..,
तेरे बेहिसाब ख्यालों ने, बेतहाशा लफ्ज़ दिये..,