हम ने तो वफ़ा के लफ़्ज़ को भी वजू के
साथ छूआ जाते वक़्त उस ज़ालिम को
इतना भी ख़याल न हुआ
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हम ने तो वफ़ा के लफ़्ज़ को भी वजू के
साथ छूआ जाते वक़्त उस ज़ालिम को
इतना भी ख़याल न हुआ
कहाँ मिलता है कोई समझने वाला
जो भी मिलता है, समझाकर चला जाता है…
मैं मुसाफ़िर हूँ ख़तायें भी हुई होंगी मुझसे,
तुम तराज़ू में मग़र मेरे पाँव के छाले रखना..
कल बड़ा शोर था मयखाने में,
बहस छिड़ी थी जाम कौन सा बेहतरीन है,
हमने तेरे होठों का ज़िक्र किया,
और बहस खतम हुयी..
गलती उनकी नहीं कसूरवार मेरी गरीबी थी दोस्तो
हम अपनी औकात भूलकर बड़े लोगों से दिल लगा बैठे !!
मैं आदर्शों पर चलने की बातें करता हूँ !
मेरा अक्सर लोगों से झगड़ा हो जाता है !!
चलो तुम रास्ते ख़ोजो बिछड़ने के,
हम माहौल पैदा करते है मिलने के !!
सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है ….
तुम गए हो जब से , उजाला नहीं हुआ …
तुम लाख छुपाओ ……मुझसे जो रिश्ता है…. तुम्हारा…..
सयाने कहते हैं नजर अंदाज करना भी मुहब्बत है…..
तलब नहीं कोई हमारे लिए तड़पे ,
नफरत भी हो तो कहे आगे बढ़के.!!