चेहरे पर गिराकर जुल्फ

चेहरे पर गिराकर जुल्फ बरबस मुस्कुराते हो !
खुदाया कहर ढाते हो खुदाया कहर ढाते हो !!

तुम्हारे बदन पर बूँदें ठहर पातीं नहीं फिर भी !
क्यों हर एक मौसम की बारिश में नहाते हो !!

कभी छुपकर के आते थे अभी छुपते हो हमसे भी !
ये दौरे इश्क है जानां क्यों छुपते और छुपाते हो !!

नज़र देखीं नजारे भी बहुत अन्तर नहीं होता !
नजारों को अगर देखें , नज़र तीरे चलाते हो !!

कभी बाँधी कभी खोलीं ये जुल्फें तुमने कई बार !
कुछ एैसे धूप छाँव कर सूरज को सताते हो !!

बहुत मासूम से लगते हो हमको भी मगर सुनलो !
कमसिनी में भी जवानी की बहुत बातें बनाते हो !!

तुम शौक से सुनलो सभी तेज़े गज़ल लेकिन !
खुद ही गुनगुनालो तुम सखी को क्यों सुनाते हो

हमारे जमाने में

हमारे जमाने में दो चोटी बनाया करती थीं लड़कियाँ
पर, बड़ी मुश्किल से नज़र आया करती थीं लड़कियाँ
आँखों में काजल और माथे पर बिंदी हो न हो मगर
गालों पर पावडर बहुत लगाया करती थीं लड़कियाँ
किसी नसीब वाले के लिए ही टूटता था उनका मौन
जब बोलतीं, तो बस फूल बरसाया करती थीं लड़कियाँ
उन दिनों कील – मुहासे नहीं फकत रोशन चेहरे थे
अल सुबह से काम में लग जाया करती थीं लड़कियाँ
ख्वाब तो उनके तब भी रंग-बिरंगे-सुनहरे ही थे
जाने क्या सोचकर गुनगुनाया करती थीं लड़कियाँ

ओस की बूंदे

ओस की बूंदे है, आंख में नमी है, ना उपर आसमां है ना नीचे जमीन है ये कैसा मोड है जिन्‍दगी का जो लोग खास है उन्‍की की कमी हैं