इक ख़्वाब हो के रह गई है रस्म-ऐ-मोहब्बत…
इक वहम सा है अब.. मेरे साथ तुम भी थे….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
इक ख़्वाब हो के रह गई है रस्म-ऐ-मोहब्बत…
इक वहम सा है अब.. मेरे साथ तुम भी थे….
हम तो वाकिफ थे उनके अंदाज से
पर वो बेवफा कब हुए पता ही नही चला
छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था..
पर बड़ी बात पे चुप रहना तुम्ही से सीखा..
कफन उठाओ ना मेरा जमाना देख ना ले..
मै सो गया हूँ तेरी निशानिया लेकर….!!
कल अचानक देखा तरसी निग़ाहों को
किताबे आज भी छाती से लग के सोना चाहती है
तुम्हे क्या पता, किस दर्द मे हूँ मैं..
जो लिया नही, उस कर्ज मे हूँ मैं..
बात इतनी सी थी क़ि तुम अच्छे लगते हो ,
अब बात इतनी बढ़ गयी क़ि तुम बिन कुछ अच्छा नहीं लगता ।
जिसको तलब हो हमारी,
वो लगाये बोली,
सौदा बुरा नहीं..
बस “हालात” बुरे है.!
ये तो इश्क़ का कोई लोकतंत्र नहीं होता,
वरना रिश्वत देके तुझे अपना बना लेते |
तू पंख ले ले और मुझे सिर्फ हौंसला दे दे,
फिर आँधियों को मेरा नाम और पता दे दे !!