ना नूर थे

ना नूर थे ना रंग फिर भी दिल ये कायल,इस मोहब्त का क्या पता क्या सोचकर हो जाये…….

एक अजीब सा

एक अजीब सा मंजर नज़र आता हैं … हर एक आँसूं समंदर नज़र आता हैं कहाँ रखूं मैं शीशे सा दिल अपना .. हर किसी के हाथ मैं पत्थर नज़र आता हैं|

हाल ए दिल

हाल ए दिल अपना उनको सुनाए कैसे
मै कितना बिखरा हूँ उनको बताए कैसे

दिन भर तो मेरी मसक्कत मे बीत जाते है
रात का ये मंजर मै उनको दिखाए कैसे

अब तोअपने भी मुँह मोड लेते है मुझसे
तुम भी मेरे अपने हो ये समझाए कैसे

अब तो दीवाना ए आलम ऐसी बढी है
सपनो पे भी वो ही छाए है बतलाए कैसे

मेरा अब हाल बडा ही बोझिल है यारो
अब किसी से गम ए दिल दिखलाए कैसे