हर “इसान” अपनी “जुबां” के “पीछे” “छुपा” हुआ है
अगर उसे “समझना” है तो उसे “बोलने” दो….!!!”
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हर “इसान” अपनी “जुबां” के “पीछे” “छुपा” हुआ है
अगर उसे “समझना” है तो उसे “बोलने” दो….!!!”
तेरे क़रीब आकर उलझनो में हुँ……
पता नही दोस्तो में हुँ या दुशमनो में हुँ…
पुरक़ैफ बहारें आ ना सकी
पुरलुफ़्त नज़ारे हो ना सके
दौर ए मय रंगी चल ना सका
फ़ितरत के ईशारे हो ना सके
आलम भी वही दिल भी वही
तक़दीर को लेकिन क्या कहिये
हम उनके हैं हम उनके थे
पर वो हमारे हो न सके …..
बात वफाओँ की होती तो
कभी ना हारते हम..
खेल नसीबोँ का था
भला उसे कैसे हराते.!!
एक तुम हो जिस पर दिल आ गया वरना…
हम खुद गुलाब हैं किसी और फूल की ख्वाहिश
नही करते…
सर पर चढ़कर बोल रहे हैं, पौधे जैसे लोग,
पेड़ बने खामोश खड़े हैं, कैसे-कैसे लोग…..
मैं दुनिया के तार मिलाता रहता हूँ
दुनिया मेरे फ्यूज उड़ाती रहती है |
देख कर उसको तेरा यूँ पलट जाना,…..
नफरत बता रही है तूने मोहब्बत गज़ब की थी|
कुछ इस तरह से नाराज़ है वो हमसे,
जैसे उन्हे किसी और ने मना लिया हो|
कौन कहता है के मुसाफिर ज़ख़्मी नहीं होते,
रास्ते गवाह है,
बस कमबख्त गवाही नहीं देते ।।