पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर
नहीं मिले
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर
नहीं मिले
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले
लोग कहते हैं कि वक़्त किसी का ग़ुलाम
नहीं होता,.
फिर तेरी मुस्कराहट पे वक़्त क्यूँ थम सा जाता है…
कुछ लोग मुझे अपना
कहा
करते थे..
सच कहूँ तो वो सिर्फ
कहा करते थे.!!
आदमी हूँ , इसलिये जुदा हूँ , कठपुतलियों से …
उंगलियों के इशारों में , मुझे चलना नही आता ..!!
मत कर इतना गुरुर खुद पर,
हमने चाहना छोड़
दिया,तो लोग पूछना भी छोड़ देंगे
बहुत अंदर तक जला देती है,वो शिकायतें जो बयाँ नही होती…
क्यों सताते हो मुझे यूँ दुरियाँ बढ़ाकर, क्या तुम्हे
मालूम नहीं अधूरी हो जाती है तुझ बिन जिन्दगी
बहुत जी
लिया उनके लिये जो मेरे
सबकुछ थे…!अब जीना है उनके
लिये
जिनके लिये मै सबकुछ हूं …!!
ख़ूबसूरत था
इस क़दर के मेह्सूस ना हुआ..
कैसे, कहा और कब मेरा बचपन चला गया
मेरा झुकना और तेरा खुदा हो जाना,
अच्छा नही इतना बड़ा हो जाना..!!