ज़माना हो गया बिस्मिल, तेरी सीधी निगाहों पे ,
खुदा ना ख्वास्ता, तिरछी नज़र होती, तो क्या होता !!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ज़माना हो गया बिस्मिल, तेरी सीधी निगाहों पे ,
खुदा ना ख्वास्ता, तिरछी नज़र होती, तो क्या होता !!!
उससे खफा होकर भी देखेंगे एक दिन,
कि उसके मनाने का अंदाज़ कैसा है..
मैं क़तरा हो के भी तूफ़ाँ से जंग लेता हूँ
मुझे बचाना समुंदर की ज़िम्मेदारी है|
कभी तो खर्च कर दिया करो..
खुद को मुझ पर…
तसल्ली रहें..
मामूली नही है हम….
मेरी बातों से कुछ सबक़ भी ले ..मेरी बातों का कुछ बुरा भी मान ..
चले गये तो पुकारेगी हर सदा हमको,
न जाने कितनी ज़बानों से हम बयां होंगे|
आंखें अपनी साफ़ तो रखिये ज़रा..
उन में खुद को देखता है आइना.!
मुहब्बत मुक़म्मल होती तो ये रोग कौन पालता …
अधूरे आशिक़ ही तो शायर हुआ करते हैं…
बहुत दिनों से
जिन्हें ओढ़ा नहीं है
कल उन रिश्तों
को धूप दिखाने का मन है…
मिलती है मौजूदगी उस खुदा की उसको
जिसने जर्रे जर्रे में ,क़तरे क़तरे में तलाशा है उसको ।