आईने का जाने कब गुरुर बढ जाए …
पत्थरों से भी दोस्ती निभाना जरुरी है..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आईने का जाने कब गुरुर बढ जाए …
पत्थरों से भी दोस्ती निभाना जरुरी है..
मेरे खेत की मिट्टी से पलता है तेरे शहर का पेट
मेरा नादान गाँव अब भी उलझा है कर्ज की किश्तों में..
ऐसा तो कभी हुआ नहीं,
गले भी मिले, और छुआ नहीं!
मेरी नरमी को मेरी कमजोरी न समझना….
ऐ नादान,
सर झुका के चलता हूँ तो सिर्फ ऊपर वाले के खौफ से…।
दरवाजे पर लिखा था…मुझे बुलाना मत, मैं बहुत दुखी हूँ
सच्चा मित्र अंदर जाकर बोला…मुझे पढ़ना नहीं आता है।।
ये ना पूछ कि शिकायतें कितनी हैं तुझसे, ऐ जिंदगी,
सिर्फ ये बता कि कोई और सितम बाकी तो नहीं?
फिर कोई मोड़ लेने वाली है ज़िन्दगी शायद,
अब के फिर हवाओं में एक बे-करारी है।
न जाने कब खर्च हो गये, पता ही न चला,
वो लम्हे, जो छुपाकर रखे थे जीने के लिये।
मुद्दत के बाद उसने जो आवाज दी मुझे…
कदमों की क्या बिसात, साँसें ही थम गयी…!!!
दौलत की दीवार में तब्दील रिश्ते कर दिये,
देखते ही देखते
भाई मेरा पडोसी हो गया।