कागज़ पर उतारे
कुछ लफ्ज़,
ना खामखा थे..
ना फ़िज़ूल थे..
ये वो जज़्बात थे..
लब जिन्हें कह ना पाएं
थे कभी…!!
Category: Mosam Shayri
माना की आज
माना की आज इतना वजुद नही हे मेरा पर…
बस उस दिन कोई पहचान मत निकाल लेना जब मे कुछ बन जाऊ…
लगने दो आज महफिल …
लगने दो आज महफिल ….
शायरी कि जुँबा में बहते है ..
तुम ऊठा लो किताब गालिब कि ….
हम अपना हाल ए दिल कहते है
शिकवा तो बहुत है
शिकवा तो बहुत है मगर शिकायत नहीं कर सकते
मेरे होठों को इज़ाज़त नहीं तेरे खिलाफ बोलने की
दिल की बातें
दिल की बातें दूसरों से मत कहो लुट जाओगे
आज कल इज़हार के धंधे में है घाटा बहुत
रात होते ही
रात होते ही,
तेरे ख़यालों की सुबह हो जाती है
सबको फिक्र है
सबको फिक्र है अपने आप को सही साबित करने की..!
ज़िन्दगी, जिन्दगी नहीं कोई इल्जाम हो जैसे..!!
बस तुम्हेँ पाने की तमन्ना
बस तुम्हेँ पाने की तमन्ना नहीँ रही..
मोहब्बत तो आज भी तुमसे बेशुमार करतेँ हैँ.
कह दो कोई उन्हें
कह दो कोई उन्हें कि अपना सारा वक्त दे दें मुझे,
जी नहीं भरता मेरा जरा जरा सी मुलाकातों से !
पास बैठे इंसान के लिए
पास बैठे इंसान के लिए वक्त नहीं है…!!!
दूर वाले.. आजकल नजदीक बहुत हैं…