अपने ही साए में था, मैं शायद छुपा हुआ,
जब खुद ही हट गया, तो कही रास्ता मिला…..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अपने ही साए में था, मैं शायद छुपा हुआ,
जब खुद ही हट गया, तो कही रास्ता मिला…..
मंज़ूर नहीं किसी को ख़ाक में मिलना,
आंसू भी लरज़ता हुआ आँख से गिरता है…..
अरे कितना झूँठ बोलते हो तुम,,,
खुश हो और कह रहे हो मोहब्बत भी की है…
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं,
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है…
वो इश्क ही क्या,
जो सलामत छोड़ दे…
इतना काफी है के तुझे जी रहे हैं,
ज़िन्दगी इससे ज़्यादा मेरे मुंह न लगाकर…!!
तुम दिल में रहो इतना ही बहुत है,
मुलाकात की हमें इतनी जरूरत भी नहीं है !!
हाथ की नब्ज़ काट बैठा हूँ,
शायद तुम दिल से निकल जाओ ख़ून के ज़रिये…
तेरे अल्फाजों से थे जो …शिकवे…
हमने तेरे लबो से लड़कर मिटा दिए|
किसी से जुदा होना अगर इतना आसान
होता ,
तो….
जिस्म से रूह को लेंने कभी फरिस्ते
ना आते !!