मेरी गुमशुदगी की जब तफ्शीश हुई,
मैं बरामद हुआ उनके ख्यालों में…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मेरी गुमशुदगी की जब तफ्शीश हुई,
मैं बरामद हुआ उनके ख्यालों में…
शतरंज खेल रही है जिंदगी कुछ इस कदर,
कभी तेरा इश्क़ मात देता है कभी मेरे लफ्ज़
लहरों की ज़िद पर क्यों अपनी शक़्ल बदल लेतीं है ,
दिल जैसा कुछ होता होगा शायद इन चट्टानों में।
कुछ ऐसे खो जाते है तेरे दीदार में
जैसे बच्चे खो जाते है भरे बाज़ार में|
डरते हैं उस पंछी के आशियाँ के उजड़ने से
हम भी उजड़े थे…
किसी तूफान में.. यूँ ही
मस्जिद की मीनारें बोली
मन्दिर के कंगूरों से,,
सम्भव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से।।
उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब
चाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं
चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब
आखिर मै किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते है
कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब
उस रात से हम ने सोना ही छोड़ दिया
‘यारो’
जिस रात उस ने कहा कि
सुबह आंख खुलते ही हमे भूल जाना..
आज सुबह के घने कोहरे ने गजब सीख दी,
बहुत दूर तक देखने की कोशिश व्यर्थ है…
एक एक कदम चलते चलो,
रास्ता स्वयं खुलता जाएगा..!
ज़रा सी तबियत क्या खराब
हुई बूढ़े बाप की ,
बेटे वकील को बुला लाये….. डाक्टर से पहले।