तहलील नहीं हो पाती

शायरी रूह में तहलील नहीं हो पाती
हमसे जज्बात की तशकील नहीं हो पाती

हम मुलाजिम हैं मगर थोडी अना रखते हैं
हमसे हर हुक्म की तामील नहीं हो पाती

आसमां छीन लिया करता है सारा पानी
आंख भरती है मगर झील नहीं हो पाती

रात भर नींद के सहरा में भटकता हूँ मगर
सुब्ह तक ख्वाब की तामील नहीं हो पाती

रात ही के किसी हिस्से में बिखर जाता हूँ
यास उम्मीद में तब्दील नहीं हो पाती |

हर कोई जताता है

झ़ुठा अपनापन तो हर कोई जताता है…

वो अपना ही क्या जो हरपल सताता है…

यकीन न करना हर किसी पे..

क्यों की करीब है कितना कोई ये तो वक़्त ही बताता है…