कहीं और सिर टिका लूँ तो आराम नहीं आता
बेअक्ल दिल भी पहचानता है कन्धा तुम्हारा….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कहीं और सिर टिका लूँ तो आराम नहीं आता
बेअक्ल दिल भी पहचानता है कन्धा तुम्हारा….
कभी नूर-ओ-रँग भरे चेहरे से
इन घनी जुल्फोँ का पर्दा हटाओ,जरा हम भी तो देखेँ,
आखिर
चाँद होता कैसा है….!!!
हो गई थी कुछ इस कदर करीब तू मेरे,
के अब इन फासलों में भी तेरी खुशबु आती है..!!
फ़रियाद कर रही हैं तरसी हुई
निगाहें…
देखे हुऐ किसी को जमाना हो
गया…!!!
लोगों की नजरो मे हमारी कोई कीमत ना हो,
लेकिन कोई तो होगा जो, हमारा हाथ पकड़ कर खुद पर नाज़ करेगा..
यूँ तो मुझे किसी के भी छोड़ जाने का गम नहीं बस,
कोई ऐसा था जिससे ये उम्मीद नहीं थी..
खाली हाथ लेके जब घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और फिर से मर जाता हूँ मैं|
हारने के बाद इंसान नहीं टूटता…..
हारने के बाद लोगों का रवय्या उसे टूटने पर मज़बुर करता है…..
नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं,
कसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नहीं देता !!