इस शहर में

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं|

मनाने की कोशिश

मनाने की कोशिश तो बहुत की हमनें…पर जब वो हमारे लफ़्ज ना समझ सके.. तो हमारी खामोशियों को क्या समझेंगे|