आदमी को परखने की इक ये भी निशानी है…
गुफ़्तगू ही बता देती है कौन ख़ानदानी है
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आदमी को परखने की इक ये भी निशानी है…
गुफ़्तगू ही बता देती है कौन ख़ानदानी है
कौन कहता है आसमां में सुराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों!
तुझे जमाने का डर है, मुझसे बात न कर,
दिल में कोई और है, तो मुझसे बात न कर ….
पत्थर की दुनिया जज़्बात नही समझती,दिल में क्या है वो बात नही समझती,तन्हा तो चाँद भी सितारों के बीच में है,पर चाँद का दर्द वो रात नही समझती
उस दिल की बस्ती में आज अजीब सा सन्नाटा है, जिस में कभी तेरी हर बात पर महफिल सजा करती थी।
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं|
खो गई है मंजिलें, मिट गए हैं रस्ते,
गर्दिशें ही गर्दिशें, अब है मेरे वास्ते |
मनाने की कोशिश तो बहुत की हमनें…पर जब वो हमारे लफ़्ज ना समझ सके.. तो हमारी खामोशियों को क्या समझेंगे|
यही हुस्नो-इश्क का राज है कोई राज इसके सिवा नहीं जो खुदा नहीं तो खुदी नही, जो खुदी नहीं तो खुदा नहीं
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी….
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए…