अब तो पत्थर भी बचने लगे है मुझसे,
कहते है अब तो ठोकर खाना छोड़ दे !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अब तो पत्थर भी बचने लगे है मुझसे,
कहते है अब तो ठोकर खाना छोड़ दे !
बड़ा गजब किरदार है मोहब्बत का,
अधूरी हो सकती है मगर ख़तम नहीं…
सभी ज़िंदगी के मज़े लूटते हैं,,,
न आया हमें ये हुनर ज़िंदगी भर…
मेरी मुहब्बत अक्सर ये सवाल करती है…
जिनके दिल ही नहीं उनसे ही दिल लगाते क्यूँ हो…
नींदों ही नींदों में उछल पड़ता है,
रात के अँधियारे में चल पड़ता है!
मन से है वो बड़ा ही नटखट चंचल,
जिस किसी को देखा मचल पड़ता है!
ऐ नींद ! ज़रा देर से आया करो,
रात को भी काम में खलल पड़ता है!
कभी रहते थे जहाँ राजा-रानियाँ,
वहाँ जालों से अटा महल पड़ता है!
उसका वास्ता रहा सदैव गरमी से,
आदतन कभी-कभार उबल पड़ता है!
रात को नई ख़ुशी के इंतज़ार में,
सवेरा होते ही वह निकल पड़ता है!
घोलकर जहर खुद ही हवाओं में हर शख्स मुँह छुपाए घूम रहा है|
मेरी एक छोटी सी बात मान लो,
लंबा सफर है हाथ थाम लो…
बेजुबाँ महफिल में शोर होने लगा,
ना जाने कौन पढ़ गया खामोशी मेरी !!
खुबसूरत क्या कह दिया उनको, के वो हमको छोड़कर शीशे के हो गए
तराशा नहीं था तो पत्थर थे, तराश दिया तो खुदा हो गए|
मैं अपनी चाहतों का हिसाब करने जो बेठ जाऊ तुम तो सिर्फ मेरा याद करना भी ना लोटा सकोगे …