दर्द दे गए सितम भी दे गए.. ज़ख़्म के साथ वो मरहम भी दे गए, दो लफ़्ज़ों से कर गए अपना मन हल्का, और हमें कभी न रोने की क़सम दे गए
Category: Love Shayri
मुझे मालूम है..
मुझे मालूम है.. कि ऐसा कभी.. मुमकिन ही नही !
फिर भी हसरत रहती है कि.. ‘तुम कभी याद करो’ !!
तुझे ही फुरसत ना थी
तुझे ही फुरसत ना थी किसी अफ़साने को पढ़ने की,
मैं तो बिकता रहा तेरे शहर में किताबों की तरह..
तलाशी लेकर मेरे
तलाशी लेकर मेरे हाथों की क्या पा लोगे तुम बोलो,
बस चंद लकीरों में छिपे अधूरे से कुछ किस्से हैं..
बता किस कोने में
बता किस कोने में, सुखाऊँ तेरी यादें,
बरसात बाहर भी है, और भीतर भी है..
कभी कभी यूँ भी
कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है
हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी
हमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है
उससे बिछड़े बरसों बीते लेकिन आज न जाने क्यों
आँगन में हँसते बच्चों को बे-कारण धमकाया है
कोई मिला तो हाथ मिलाया कहीं गए तो बातें की
घर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है|
वो जो अँधेरो में
वो जो अँधेरो में भी नज़र आए
ऐसा साया बनो किसी का तुम|
उफ़ ये गजब की रात
उफ़ ये गजब की रात और ये ठंडी हवा का आलम,
हम भी खूब सोते अगर उनकी बांहो में होते |
हर घड़ी ख़ुद से
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा
किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूँधता फिरता है मुझे घर मेरा
एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा
मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा
आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा
इंतहा आज इश्क़ की
इंतहा आज इश्क़ की कर दी
आपके नाम ज़िन्दगी कर दी
था अँधेरा ग़रीब ख़ाने में
आपने आ के रौशनी कर दी
देने वाले ने उनको हुस्न दिया
और अता मुझको आशिक़ी कर दी
तुमने ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे बिखरा कर
शाम रंगीन और भी कर दी