झील की चादर पे

झील की चादर पे फैली मौत सी ख़ामोश उदासी देखता हूँ…
पानी के इतने पास हूँ पर बिन तेरे ज़िंदगी प्यासी देखता हूँ?

मैं रुठा जो

मैं रुठा जो तुमसे तुमने हमें मनाया भी नहीं ,
अपनी मोहब्बत का कुछ हक जताया भी नहीं !!