साहिब ए अकल

साहिब ए अकल हो तो एक मशविरा तो दो….

एहतियात से इश्क करुं या इश्क से एहतियात…..

ख़ुद के लिए

ख़ुद के लिए या ख़ुदा के लिए जीने की तमन्ना थी,
तुम कब ज़िंदगी बन गए रूह को इल्म ही ना हुआ|

समझने वालों को

समझने वालों को तो बस इक इशारा काफी होता है
वरना कभी कभार बिन चाँद के भी रात का गुजारा होता है ।

चल ओ रे मांझी

चल ओ रे मांझी तू चल ।
अपनी राहों को बनाके एक कश्ती हर पल
न दे के हवाला की क्या होगा यहाँ कल
कुछ अधूरी ख्वाईशो मे भर और बल
कभी उन्हें अपना बना,उनके रंगों मे ढल
युही हर मोड़ हर शहर हर डगर
मुसलसल कर कुछ तू यु पहल
चल ओ रे मांझी तू चल ।

आज पास हूँ

आज पास हूँ तो क़दर नहीं है तुमको,
यक़ीन करो टूट जाओगे तुम मेरे चले जाने से|